Sustainable development has been defined in many ways, but the most frequently quoted definition is "Sustainable development is development that meets the needs of the present without compromising the ability of future generations to meet their own needs."
So sustainable development is economic development that is conducted without depletion of natural resources.
संधारणीय विकास अथवा निरंतर विकास अथवा संपोषित (Sustainable Development), विकास की वह अवधारणा है जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुँचए बिना, भावी पीढ़ी को ध्यान मे रखकर वर्तमान विकास दर जारी रखना.
निरंतर विकास
पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के समय रहते बचाव की आवश्यकता
क्या है निरंतर अथवा सतत विकास ?
पर्यावरण एवं विकास के बीच गहरा सम्बन्ध है। आधुनिक विकास गतिविधियों ने संसाधनों के साथ-साथ पर्यावरण को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। आधुनिक मनुष्य के लालची स्वभाव के चलते प्राकृतिक संसाधनों जैसे, जल, खनिज पदार्थ, जीवाश्म ईंधन, वन, मृदा आदि का अत्यन्त ही शोषण हुआ है परिणामस्वरूप आज जल की समस्या, जीवाश्म ईधनों के घटते भण्डार, मृदा की उपजाऊ क्षमता का ह्रास, वैश्विक तपन, जैव-विविधता का क्षरण आदि ने वैश्विक स्तर पर विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है, जिससे निजात पाना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और यह संपोषित विकास के द्वारा ही संभव है।
निरंतर विकास वह विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति भी सुनिश्चित करता है। निरंतर विकास के अन्तर्गत संसाधनों का सीमित उपयोग होता है और साथ ही उसके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी लाभान्वित हो सकें। इसके अतिरिक्त विकास की प्रक्रिया इस प्रकार की होती है, जिससे पर्यावरण अव्यवस्थित न हो और उसके संरक्षण को बढ़ावा मिले।
कैसे हो निरंतर विकास के लक्ष्य की प्राप्ति?
विश्वभर में विभिन्न क्षेत्रों में विकास हो रहा है। फलस्वरूप लोगों का जीवन स्तर सुधर रहा है। मगर विकास की इस अंधी दौड़ के कारण पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन प्रभावित हो रहे हैं। अतः आज ऐसे विकास की आवश्यकता है जो पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण में मददगार साबित हो सके। निरंतर विकास के लक्ष्य प्राप्ति हेतु निम्नलिखित कदमों को अपनाये जाने की नितांत आवश्यकता है।
1. वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग: निरन्तर विकास की धारणा के तहत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा आदि के इस्तेमाल पर जोर दिये जाने की आवश्यकता है ताकि हम कोयला एवं तेल जैसे जीवाश्म ईधनों की बचत कर सकें। जैसा कि हम जानते हैं कि जीवाश्म ईधनों के सीमित भण्डार हैं और इनके अत्यधिक उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषण का भी खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। ‘‘वैश्विक तपन’’ एवं ‘‘अम्ल वर्षा’’ जीवाश्म ईधनों के अत्यधिक उपयोग के ही परिणाम हैं। आज दुनिया के ज्यादातर विकसित औद्योगिक राष्ट्र, ‘अम्ल वर्षा’ की चपेट में हैं। नार्वे, स्वीडेन, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, चेकोस्लोवाकिया आदि देश इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
2. जीवांश कृषि को बढ़ावा: रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर आधारित आधुनिक कृषि प्रणाली ने मृदा जैसे प्राकृतिक संसाधन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। रासायनिक उर्वरकों के अधिक उपयोग से मृदा संरचना नष्ट हो जाती है, जबकि कीटनाशक मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को प्रभावित करते हैं जिससे मृदा की उपजाऊ क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। निरन्तर विकास के अन्तर्गत मृदा संरक्षण के लिए आज जीवांश कृषि (Organic agriculture) पर विशेष जोर दिये जाने की नितान्त आवश्यकता है जिसमें रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग पूर्णतः वर्जित होता है। इस प्रकार की कृषि से मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है साथ ही उसकी उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण के स्वास्थ्य पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
3. जल संरक्षण: भूमिगत जल के अन्धाधुन्ध दोहन के फलस्वरूप वैश्विक स्तर पर जल की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। अगर वर्तमान स्थिति बरकरार रही तो अगला विश्वयुद्ध जल के लिए ही होगा। जल की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए वर्षा जल संचय के साथ-साथ जल के संरक्षण तथा सीमित उपयोग पर विशेष जोर दिये जाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त खाली भूमि को वनस्पतियों से आच्छादित करने की भी आवश्यकता है क्योंकि वनस्पतियां वर्षा जल के बहाव को रोककर भूमिगत रिसाव को बढ़ावा देती हैं परिणामस्वरूप भूमिगत जल स्तर बना रहता है। इसके अतिरिक्त भूमिगत जलस्तर के स्थायित्व के लिए नमभूमियों (Wetlands) का पुनरुत्थान एवं संरक्षण आज समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में टपक सिंचाई विधि को अपनाकर जल का संरक्षण किया जा सकता है।
4. वन संरक्षण एवं वनरोपण: वन अत्यन्त ही महत्वपूर्ण संसाधन हैं। वनों की अंधाधुन्ध कटाई के कारण न सिर्फ जैव-विविधता का क्षय होता है अपितु मृदा अपरदन Soil Erosion, बाढ़ Flood, सूखा, भूमिगत जल स्तर में गिरावट आदि जैसी तमाम समस्याओं को भी बढ़ावा मिलता है। वन कार्बन डाईआक्साइड के मुख्य शोषक और जीवनदायिनी गैस आक्सीजन के प्रमुख स्रोत होते हैं। अतः वन पर्यावरण संरक्षण में सहायक होते हैं। वन विनाश के कारण आज पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है जिससे वैश्विक जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ रहा है।
निरन्तर विकास की धारणा के तहत वन संसाधन के सीमित उपयोग के साथ-साथ वनरोपण पर जोर दिये जाने की आवश्यकता है ताकि वन आवरण में वृद्धि हो सके और जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचा जा सके।
5. वन्य जीव संरक्षण: आधुनिक विकास गतिविधियों जैसे-बांधों, खदानों, सड़कों, उद्योगों और पर्यटन विकास के कारण बहुत से जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो गये हैं जिसके कारण वनस्पतियों एवं जन्तुओं की बहुत सी प्रजातियां आज विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी हैं। इसके अतिरिक्त कुछ वनस्पतियों एवं जन्तुओं की प्रजातियों के अत्यधिक दोहन ने भी उन्हें संकटग्रस्त श्रेणी में पहुँचा दिया है। निरन्तर विकास की धारणा के तहत आज इन प्रजातियों के संरक्षण एवं विस्तार को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है ताकि पारिस्थितिक संतुलन बना रहे और भावी पीढ़ियां वनस्पतियों एवं जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियों से लाभान्वित हो सकें।
निष्कर्ष:
उपरोक्त बातों के अतिरिक्त हमारे दैनिक जीवन मे कई ऐसी छोटी छोटी बाते है जिन्हें अपनाकर हम निरन्तर विकास मे अपना सहयोग दे सकते है जैसे कि
बिजली की बचत करके
पानी की बर्बादी रोककर
पेट्रोल डीजल आदि का कम से कम उपयोग
प्राक्रृतिक संसाधनों का दुरूपयोग रोककर
अपने आसपास अधिक से आधिक पेड़ लगाकर
बरसात के पानी का संरक्षण करकर
Sparsh health mela is an awareness program aimed to bring all individuals and organisations working for our environment at one place for more effective implementation of ideas for sustainable development.
It is planned to provide every visitor an opportunity to interact and know about environment and share her/his ideas.
Mela is supported by Doctors, Teachers, Students and Volunteers from different areas.
Following activities will be available for all in Sparsh health mela (Free of cost)
Exhibition of different ideas how one can use them in daily life for betterment of environment
Display of Posters made on theme by school students
Drawing & Painting competition on topic on spot for 3-15 year old children. Kindly bring your own hard board and colors and reach venue before 9:30 am for on spot registration. Winners will get certificate and attractive prizes
Street play by professionals and students
Workshop on different methods of environment preservation
Health checkup by specialist doctors, basic investigation and medicines
Blood donation camp
Organ Donation Registration
Cancer screening and advice
BMD - Bone Mineral Density
Hearing assessment
Yog, Meditation & Life Style modification
Basic life support workshop
Health exhibition on different health topics
RULES FOR PARTICIPATING IN SPARSH POSTER MAKING COMPETITION
An initiative to create Awareness among children for sustainable development
( Organised by Society for Promoting Awareness Regarding School & Health)
SPARSH is a voluntary organization of doctors, teachers and professionals who work for raising awareness about health and education in community. SPARSH has started 4 G DRIVE – Get Garbage free Green Ghaziabad to create mass awareness among our children about sustainable development- How we can contribute.
As a part of program, a poster making competition is being organized for all the children studying from class VI to XII. There is no entry fee for the same. Participants get the chance to win prizes as follows
1st Prize : Rs 2500/ Cash + Certificate + Medal
2nd Prize : Rs 1500/ Cash + Certificate +Medal
5 Consolation Prizes : Rs 500/ Cash each + Certificate + Medal
All the participants will get Certificate of Appreciation.
Instructions :
• The theme is “ Sustainable Development in community- How we can contribute ”. The poster should be an individual effort of a child.
• Poster must be on a A 3 size ( 297x420 mm) or A 2 size ( 420x594 mm) sheet. Acceptable tools of drawing/ painting include pencil, crayon, water color, oil paint etc. Photographs, wires and other 3 D objects are not acceptable.
• Name and age of participant as well as school’s name and class/section must be clearly mentioned on the right lower corner of poster in front in the English language and contact number of participant or parent must be mentioned on back of poster so that the winners can be individually informed.
• All posters submitted for competition shall become the property of SPARSH.
• Posters can be submitted to the class teacher or directly deposited at SPARSH office c/o Dr. Bhargava Clinic Kshitij Complex First Floor Sector 4 Market Vaishali Ghaziabad near Sarvodaya Hospital between 11 am -1 pm, 6 pm-9pm ( Ph. 8800340247) any day except Sunday. Last date for submission is 26th November 2018.
• Evaluation- A jury of eminent personalities from related fields, whose decisions are final, will judge the posters on the following criteria : Overall impact of the display for eye catching appeal, visual attractiveness and its ability to draw the viewer attention, clarity of the message and creativity.
In case of any dispute or discrepancy decision of organisers will be final and binding to all.
Participants can check their entries on SPARSH website www.sparshsociety.org one week after submitting the posters.
In submitting aposter, students agree that the poster will be displayed at the 8th SPARSH Health Mela to be organized on 2nd December 2018 and will be displayed on its website www.sparshsociety.org and other social media. Short listed entries will be informed separately and will be given a chance to display their posters.
For more information log on www.sparshsociety.org or call 8010247247, 8800340247.